दो मुखी रूद्राक्ष
दो मुखी रूद्राख गौ हत्या से लगने वाले पाप से मुक्ति दिलाने वाला होता है। यह रूद्राक्ष अपने-आप में आलौकिक शक्ति धारण किये रहता है। द्विमुखी रूद्राक्ष को शरीर के किसी भी अंग में धारण से मानसिक शन्ति एंव पारिवार में आपसी प्रेम व सौहार्द्ध बना रहता है। यदि कार्य व व्यापार में निरन्तर हानि हो रही है, तो दो मुखी रूद्राक्ष धारण करने से लाभ मिलता है।
मन, बुद्धि, विवेक पर इस रूद्राक्ष का विशेष प्रभाव रहता है। जिन जाताकों के वैवाहिक जीवन में आपसी अनबन की स्थिति बनी रहती है तो वह लोग पति व पत्नी दोनों को दो मुखी रूद्राक्ष भिमन्त्रित करके गले में धारण करने से शीघ्र ही मतभेद दूर होकर उनमें एकता व परस्पर प्रेम की भावना बलवती होने लगती है। जिन युवक-युवितियों के विवाह में बिलम्ब या बाधा आ रही है, उन्हे यह रूद्राक्ष धराण करने से शुभ परिणाम मिलते है।
दोमुखी रूद्राक्ष धारण करने से चन्द्र ग्रह से सम्बन्धित दोष भी दूर हो जाते है।
धारण विधि- किसी भी मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन ताम्रपाद में बेल पत्र रखकर, उसके उपर द्विमुखी रूद्राक्ष रखकर कुश या बेल पत्र से शुद्ध जल से, 11 बार निम्न मन्त्र से-
'ॐ नमस्ते देवदेवाय महादेव मौलिने।
जगद्धात्रे सवित्रे च शंकराय शिवाय च''।। जल छिड़कर तत्पश्चात दूध छिड़के। फिर गंगा जल से परिमार्जित कर रूद्राक्ष को ताम्रपाद में रख दें। तीसरे दिन पूर्णमासी को उसी भांति सामने रखकर गंगाजल से स्नान करायें। उसके पश्चात हवन कुण्ड में अष्ठांग हवन सामग्री से 108 बार '' नमः शिवाय'' से स्वाहा करते हुये हवन करना चाहिए। हवन के बाद रूद्राक्ष का श्रद्धापूर्वक प्रार्थना करें। प्रार्थना के बाद रूद्राक्ष को माथे से स्पर्श से कराकर धारण करना चाहिए। उपरोक्त विधि से शुद्ध करके रूद्राक्ष को धारण करने पर आशा के अनुरूप लाभ प्राप्त होगा।
दो मुखी रूद्राख गौ हत्या से लगने वाले पाप से मुक्ति दिलाने वाला होता है। यह रूद्राक्ष अपने-आप में आलौकिक शक्ति धारण किये रहता है। द्विमुखी रूद्राक्ष को शरीर के किसी भी अंग में धारण से मानसिक शन्ति एंव पारिवार में आपसी प्रेम व सौहार्द्ध बना रहता है। यदि कार्य व व्यापार में निरन्तर हानि हो रही है, तो दो मुखी रूद्राक्ष धारण करने से लाभ मिलता है।
मन, बुद्धि, विवेक पर इस रूद्राक्ष का विशेष प्रभाव रहता है। जिन जाताकों के वैवाहिक जीवन में आपसी अनबन की स्थिति बनी रहती है तो वह लोग पति व पत्नी दोनों को दो मुखी रूद्राक्ष भिमन्त्रित करके गले में धारण करने से शीघ्र ही मतभेद दूर होकर उनमें एकता व परस्पर प्रेम की भावना बलवती होने लगती है। जिन युवक-युवितियों के विवाह में बिलम्ब या बाधा आ रही है, उन्हे यह रूद्राक्ष धराण करने से शुभ परिणाम मिलते है।
दोमुखी रूद्राक्ष धारण करने से चन्द्र ग्रह से सम्बन्धित दोष भी दूर हो जाते है।
धारण विधि- किसी भी मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन ताम्रपाद में बेल पत्र रखकर, उसके उपर द्विमुखी रूद्राक्ष रखकर कुश या बेल पत्र से शुद्ध जल से, 11 बार निम्न मन्त्र से-
'ॐ नमस्ते देवदेवाय महादेव मौलिने।
जगद्धात्रे सवित्रे च शंकराय शिवाय च''।। जल छिड़कर तत्पश्चात दूध छिड़के। फिर गंगा जल से परिमार्जित कर रूद्राक्ष को ताम्रपाद में रख दें। तीसरे दिन पूर्णमासी को उसी भांति सामने रखकर गंगाजल से स्नान करायें। उसके पश्चात हवन कुण्ड में अष्ठांग हवन सामग्री से 108 बार '' नमः शिवाय'' से स्वाहा करते हुये हवन करना चाहिए। हवन के बाद रूद्राक्ष का श्रद्धापूर्वक प्रार्थना करें। प्रार्थना के बाद रूद्राक्ष को माथे से स्पर्श से कराकर धारण करना चाहिए। उपरोक्त विधि से शुद्ध करके रूद्राक्ष को धारण करने पर आशा के अनुरूप लाभ प्राप्त होगा।
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